tag:blogger.com,1999:blog-2504780496929911450.post5968644615136439856..comments2020-02-15T19:54:36.726+05:30Comments on चौखंबा: पश्चिम के ढोंग का गुणगान ना करेंसमरेंद्रhttp://www.blogger.com/profile/07666323462491120829noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-2504780496929911450.post-24785198366097074512008-06-13T22:49:00.000+05:302008-06-13T22:49:00.000+05:30Jis England ki aap badhai kar rah hain usi England...Jis England ki aap badhai kar rah hain usi England mein 1 guard ne mere mitra ko pakistani kutta kaha aur aas paas ke log muskara rahe the.Aur ye aaj se 2 saal pahle ki baat hai.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2504780496929911450.post-20124916741059890292008-06-13T15:38:00.000+05:302008-06-13T15:38:00.000+05:30Cool and Healthy debate. Go Ahead. Nice to read Di...Cool and Healthy debate. Go Ahead. Nice to read Dilip and Samrendra u both. Thanks to u both :)<BR/>-Rajesh RoshanRajesh Roshanhttps://www.blogger.com/profile/14363549887899886585noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2504780496929911450.post-90135519163245761092008-06-13T12:44:00.000+05:302008-06-13T12:44:00.000+05:30मैने दोनो ही लेख पढ़े और दोनो की ही बातों से सहमत ह...मैने दोनो ही लेख पढ़े और दोनो की ही बातों से सहमत हूँ। दिलीप का कहना सही है कि हमें अपने अतीत की ओर देखकर चलना अब बंद कर देना चाहिये। रहे होंगे हमारे पूर्वज कभी विश्वगुरू, मगर हमारा वर्तमान वो नहीं है। अब समय है कि हम उनसे कुछ सीखें।<BR/>दिलीप ने पश्चिम में नस्ल और रंगभेद के मुद्दे को छुआ है। मैं मानता हूँ वहाँ पर किसी के रंग और नस्ल पर टिप्पणी करना बहुत महंगा पड़ सकता है। इन्ग्लैंड में एक शराबी हमें कोशिश करके भी "you blody indians" नहीं कह पाया। इससे साबित होता है कि उनकी मानसिकता तो नहीं बदली है मगर नियम इतने सख्त हैं कि आपको कई बार सोचना पड़ेगा। यह भी आधा ही सच है। पूरा सच तो यह है कि समानता का तमाम ढकोसला करने के बावजूद वह समाज आज भी वही है अपनी नस्ल को सर्वष्रेठ मानने वाला। अगर ऐसा नहीं है तो क्यों हर अमीर पश्चिमी देश में अफ़्रीकी समुदाय के लोग सबसे दरिद्र इलाकों में रहते हैं?<BR/>मुझे उनमें और हमारे समाज में कोई खास अंतर नहीं नज़र आता।महेनhttps://www.blogger.com/profile/00474480414706649387noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2504780496929911450.post-26674221270144037252008-06-13T09:03:00.000+05:302008-06-13T09:03:00.000+05:30समरेंद्र, आपसे असहमत होने का कोई कारण नहीं है। मेर...समरेंद्र, आपसे असहमत होने का कोई कारण नहीं है। मेरा लेख उन लोगों के प्रति है जो इस धोखे में हैं कि हम सभ्यता की आदिभूमि या विश्वगुरु टाइप कुछ हैं।<BR/><BR/>पश्चिम का एडवांटेज इस समय है और सिर्फ इसलिए है क्योंकि पिछली चार-पांच सदियों में और खासकर औद्योगिक क्रांति के बाद वहां उत्पादन प्रक्रिया और साथ ही उत्पादन संबंध पूरब की तुलना में आधुनिक बन गए हैं। इसका असर वहां के समाज और संस्कृति पर भी पड़ा है। <BR/><BR/>समरेंद्र, हम ये कैसे भूल सकते हैं कि विश्वगुरु हम बेशक होंगे लेकिन सिविल और क्रिमिनल कोड, आधुनिक विज्ञान, टेक्नॉलॉजी, कपड़े-लत्ते, शिक्षा पद्धति और डिग्री सिस्टम, शासन प्रणाली, लोकतंत्र और भी ऐसी कई चीजें, अवधारणाएं हमने पश्चिम से ली हैं। और इसमें कुछ बुरा या अपमानजनक भी नहीं है। कृषि सभ्यता के शुरुआती दौर में पश्चिम ने पूरब से बहुत कुछ सीखा था। <BR/><BR/>शायद एक बार फिर समय का पहिया तेजी से घूम रहा है। इक्कीसवीं सदी के एशियाई सदी होने का अंदाजा लगाया जा रहा है। इसमें चीन और भारत की निर्णायक भूमिका हो सकती है। ऐसे समय में पीछे लौटने का अवकाश नहीं है।दिलीप मंडलhttps://www.blogger.com/profile/05235621483389626810noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2504780496929911450.post-80260987678600895552008-06-13T08:58:00.000+05:302008-06-13T08:58:00.000+05:30न्याय भी वही मिलता है जिधर का पलडा भारी होता है, क...न्याय भी वही मिलता है जिधर का पलडा भारी होता है, कुछ किस्सो को छोडकर (अपवाद स्वरूप)Arun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.com