सुषमा स्वराज विदेश मंत्री हैं. सेहत से जुड़ी चुनौतियों के बावजूद उन्होंने बतौर विदेश मंत्री अच्छा काम किया है. उनकी पहचान एक कद्दावर नेता और तेजतर्रार वक्ता के तौर पर होती है. विपक्ष के नेता भी उनका नाम सम्मान से लेते हैं. उन्होंने जीवन का लंबा समय दक्षिणपंथी राजनीति को समर्पित किया है. वो अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भी कैबिनेट मंत्री थीं. संघ से भी उनके रिश्ते ठीक रहे हैं. लेकिन इन खूबियों के बावजूद बीते कुछ दिनों से वो अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों के निशाने पर हैं. सोशल नेटवर्क पर उनके खिलाफ हिंसक कैंपेन चलाया जा रहा है. इस कैंपेन में शामिल लोगों की भाषा बहुत ही जहरीली है. उनमें से ज्यादातर के प्रोफाइल पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि वो खुद को “नरेंद्र मोदी का समर्थक” बताते हैं. उनका सपना अयोध्या में “राम मंदिर” बनाना है. उनमें से कुछ को नरेंद्र मोदी फॉलो भी करते हैं.
क्या है विवाद की जड़?
यह विवाद लखनऊ पासपोर्ट ऑफिस में एक हिंदू-मुस्लिम जोड़े के साथ हुए दुर्व्यवहार से शुरू हुआ. घटना 20 जून की है. तन्वी सेठ अपना पासपोर्ट बनवाने के लिए पति मोहम्मद अनस सिद्दकी के साथ लखनऊ पासपोर्ट ऑफिस पहुंची थीं. तन्वी के मुताबिक वहां तैनात कर्मचारी विकास मिश्रा ने उनसे अपना नाम बदलने या फिर पति का धर्म बदलने को कहा. ट्वीटर के जरिए उन्होंने इसकी शिकायत विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से की. मामला गंभीर था. व्यक्ति का कट्टर होना एक बात है, मगर व्यक्ति की कट्टरता सरकारी संस्थान के काम को प्रभावित करने लगे तो यह दूसरी बात है. खबर तेजी से फैली. अगले दिन जांच बिठा दी गई. विकास मिश्रा का तबादला कर दिया गया. क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी पीयूष वर्मा ने तन्वी सेठ को उनका पासपोर्ट सौंप दिया. पीयूष वर्मा को उम्मीद थी कि ऐसा करने से बात दब जाएगी. लेकिन दूसरा पक्ष हमलावर हो गया. विकास मिश्रा ने टेलीविजन चैनलों को इंटरव्यू देकर कहा कि तन्वी सेठ और उनके पति झूठ बोल रहे हैं और उन्हें फंसाया गया है. उसी बीच विकास मिश्रा के समर्थन में एक चश्मदीद भी सामने आ गया. फिर क्या था, दक्षिणपंथी गिरोह सक्रिय हो गया. सोशल नेटवर्क पर पहला हमला क्षेत्रीय पासपोर्ट ऑफिसर पीयूष वर्मा पर हुआ. दूसरा हमला विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पर हुआ. यह हमला उग्र “हिंदू ब्रिगेड” की तरफ से किया गया. सुषमा स्वराज हिंदू विरोधी और राष्ट्र विरोधी घोषित कर दी गईं.
सुषमा स्वराज पर प्रहार तीखा था. "लंपट हिंदू बिग्रेड" की इस हरकत ने सुषमा स्वराज को गुस्से से भर दिया. उनका गुस्सा होना जायज है. जिसने सियासी सफर का ज्यादातर हिस्सा बीजेपी को समर्पित कर दिया हो, उस पर बीजेपी के ही लोग हमला करें तो बर्दाश्त करना मुश्किल होगा ही. लेकिन यहां एक दिक्कत है. सुषमा स्वराज जिन लोगों से उदारता की उम्मीद कर रही हैं, वो इतने उदार हैं नहीं. उनके दिलों में नफरत भरी हुई है और उनकी सोच एकांगी है. वो हर चीज को हिंदू और मुसलमान के चश्मे से ही देखते हैं.
आखिर ऐसा क्यों है? इस सवाल का जवाब खुद सुषमा स्वराज से बेहतर शायद ही कोई दे सके. उन्होंने लंबा समय इन लोगों के बीच बिताया है. दरअसल, दक्षिणपंथी राजनीति की बुनियाद में ही नफरत और भय है. लोगों के दिलों में खौफ पैदा करने के लिए धर्म और अतीत का सहारा लिया जाता है. भारत में ऐसी राजनीति का प्रतिनिधित्व संघ करता है. विश्व हिंदू परिषद, हिंदू महासभा, बजरंग दल यह सब संघ परिवार का हिस्सा हैं. ये सभी मिल कर ऐसा जनमानस तैयार कर रहे हैं जिसके केंद्र में राम तो हैं लेकिन राम की उदारता नहीं है. धर्म के नाम पर दूसरों को गाली देना और मारना-पीटना इनका काम है. पहले इनकी संख्या कम थी. लेकिन अब ये हर गली नुक्कड़ पर नजर आएंगे. आप मोबाइल ऑन करेंगे तो वहां दिखेंगे. कंप्यूटर चालू करेंगे तो उसमें नजर आएंगे. ये हवा में घुले जहर की तरह हर जगह फैले हुए हैं.
आखिर मानवता के विरुद्ध इस चुनौती से कैसे निपटा जाए?
कोई भी समाज व्यक्तियों से बनता है. व्यक्ति मिल कर संस्थाओं का गठन करते हैं और उन्हीं संस्थाओं के जरिए समाज का संचालन होता है. अगर सामाजिक जीवन में रहने वाले व्यक्ति की सोच नकारात्मक हो और उसका असर दूसरे व्यक्तियों पर पड़ने लगे तो कुछ समय बाद संस्थाएं भी उसकी गिरफ्त में आ जाती हैं. हालांकि यह लंबी प्रक्रिया है, लेकिन जब व्यक्ति की नकारात्मक सोच का असर संस्थाओं पर पड़ जाता है तो फिर समाज और देश तेजी से गलत राह पर मुड़ता है. मानवता पर संकट मंडराने लगता है. 20वीं शताब्दी में दुनिया ने इसे करीब से देखा था. हिटलर की विकृत सोच ने पूरे विश्व को हिंसा की आग में झुलसाया और करोड़ों लोग मारे गए. भारत का विभाजन भी नकारात्मक सोच की वजह से हुआ. लाखों लोग मारे गए थे. इसलिए व्यक्ति की नकारात्मकता और हिंसक प्रवृति का जोरदार विरोध होना चाहिए. साथ ही संस्थाओं को हमेशा मानवीय और उदार बनाए रखने की कोशिश होनी चाहिए. उदार और मानवीय संस्थाएं ही उदार और लोकतांत्रिक समाज का निर्माण करती हैं.
भारत में बीते कुछ वर्षों में नकारात्मक बदलाव नजर आ रहा है. यहां के बहुसंख्य हिंदू समाज के एक बड़े हिस्से में कट्टरता बढ़ती जा रही है. अब चूंकि देश की ज्यादातर संस्थाएं इनकी गिरफ्त में हैं, इसलिए धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और उदार लोगों पर हमले तेज हो गए हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सिर्फ धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और उदार लोग ही संकट में हैं. बल्कि इनके बीच का हर वो शख्स भी संकट में है जिसके भीतर थोड़ी ममता और मानवता बची है. जो हर बात को धर्म के चश्मे से नहीं देखता.
अब ताजा प्रकरण पर एक बार फिर गौर करिए. सुषमा स्वराज के विभाग ने मानवीय नजरिया अपना कर दो नागरिकों की मदद की. राज्य की नजर में तन्वी सेठ और मोहम्मद अनस सिद्दकी दो नागरिक हैं. लेकिन हिंदू कट्टरपंथियों की नजर में मोहम्मद अनस सिद्दकी वो शख्स है जिसने “लव जेहाद” के जरिए एक “हिंदू लड़की” तन्वी सेठ से शादी की. यहां मोहम्मद अनस और तन्वी सेठ कट्टरपंथियों की नजर में “हिंदू” धर्म के “गुनहगार” हैं. इन “गुनहगारों” की मदद के चक्कर में एक “हिंदू” विकास मिश्रा का तबादला कर दिया गया. मतलब विकास मिश्रा पीड़ित है. कट्टरपंथियों की नजर में सुषमा स्वराज के खिलाफ कैंपेन चलाने के लिए यह मुद्दा काफी था और उन्होंने यही किया.
इस मामले में बहुत से लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दखल देने की मांग कर रहे हैं. कह रहे हैं कि सोशल नेटवर्क पर सुषमा के खिलाफ चल रही मुहिम में बीजेपी के आईटी सेल के लोग भी शामिल हैं. इसलिए प्रधानमंत्री को दखल देकर उन्हें शांत कराना चाहिए. नरेंद्र मोदी यह गलती नहीं करेंगे. उन्हें मालूम है कि जिस समाज का निर्माण उन्होंने और संघ ने किया है, वह समाज इतना भी उदार नहीं कि अपनों की गलतियां माफ कर सके. इसलिए सुषमा स्वराज के बचाव की जिम्मेदारी भी उन्हीं लोगों को उठानी होगी जो धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और उदार हैं. आखिर, समाज और देश में सकारात्मक बदलाव की उम्मीद भी यही लोग हैं.