Thursday, April 2, 2009

बिकता है कानून खरीदार चाहिये

एक बार फिर साबित हो गया कि देश में कानून और इंसाफ़ जैसे शब्दों की कोई अहमियत नहीं। अगर आपके पैसा और ताकत हो तो घिनौने से घिनौना अपराध करके भी बच सकते हैं। सीबीआई जैसी जांच एजेंसियां आपको बचाने में मदद करेंगी। अगर ऐसा नहीं होता तो १९८४ के दंगों के आरोपी आज जश्न नहीं मना रहे होते। दिल्ली की सड़कों पर सिखों का नरसंहार करने और कराने वालों को सज़ा जरूर मिलती। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सीबीआई ने एक बार फिर जगदीश टाइटलर के खिलाफ चल रहे केस को बंद करने की इजाजत मांगी है। सीबीआई की शह पर टाइटलर अब मीडिया को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। टाइटलर के मुताबिक मीडिया ही है जो केस को जिंदा रखना चाहती है, वरना उनकी बेगुनाही कब की साबित हो गई होती।

दूसरा मामला संजय दत्त का है। संजय दत्त ने कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज पर धमकाने का आरोप लगाया है। जिसके जवाब में हंसराज भारद्वाज का कहना है कि संजय दत्त कांग्रेस के अहसान भूल गए। कौन से अहसान? क्या कांग्रेस ने संजय दत्त को बचाने में मदद की है? ऐसा नहीं कि लोगों को ये अहसास नहीं कि संजय दत्त की मदद की गई है। सभी को ये अंदाजा है कि संजय दत्त को बचाया गया है। अगर ऐसा नहीं होता तो अबू सलेम का साथी आज एक बड़ी पार्टी का महासचिव नहीं बन पाता। फिर भी कानून मंत्री को इस खौफनाक सच का इजहार नहीं करना चाहिये। ऐसा करके वो न्यायपालिका और न्यायिक व्यवस्था के चरित्र पर सवाल खड़े कर रहे हैं। साथ ही उन हजारों, लाखों लोगों की उस आखिरी उम्मीद को भी तोड़ रहे हैं जिसके बल पर वो लोग इंसाफ़ की लड़ाई लड़ते हैं।

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