एक थे देवीलाल। वीपी सिंह जैसे तेजतर्रार और चंद्रशेखर जैसे बेबाक प्रधानमंत्रियों के तहत उप प्रधानमंत्री थे। १९८९ में जब वीपी सिंह की अगुवाई वाली सरकार में उप प्रधानमंत्री बनने से पहले वो हरियाणा के मुख्यमंत्री थे। लेकिन जब केंद्रीय राजनीति में आए, तो अपने लाडले ओम प्रकाश चौटाला को सूबे की कमान दे दी। जब हो हंगामा मचा, तो बड़े तपाक के साथ कह दिया- जब लोहार का बेटा लोहार, सोनार का बेटा सोनार, किसान का बेटा किसान तो मुख्यमंत्री का बेटा मुख्यमंत्री क्यों नहीं हो सकता। क्या मासूम तर्क था! देवीलाल ने इस तर्क के साये में अपनी भ्रष्टता, वंशवाद और पुत्र मोह को ढंकने की कोशिश तो कर ली लेकिन शायद ही कोई होगा, जिसे देवीलाल के इस तर्क में तार्किकता नजर आई हो। आखिर किसान के दर्द और मुख्यमंत्री की रईसी में आकाश पाताल का फर्क होता है। देवीलाल वाकई सीधे सादे इंसान थे। वो गांव देहात की धूल धक्कड़ से निकलकर सियासी आसमान पर चमके थे। पुत्रमोह ने उन्हें वंशवाद का पोषक बना दिया लेकिन गांव वाली सादगी उन्हें सियासी धूर्तता से जोड़ नहीं पाती थी। दूसरे होते तो कहते कि नहीं, जनता ने ही मेरे बेटे या बेटी को सेवा करने के लिए भेजा है। हम तो जनता के जन्मजात सेवक हैं। यकीन ना हो तो कांग्रेस और भाजपा की तरफ देख लीजिए।
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2 comments:
बड़े लंबे समय बाद लौटे.
हुजूर, अच्छा लगा। क्या आप वही समरेंद्र हैं जो स्टार न्यूज़ में पाए जाते थे... फिर मुंबई चले गए...इन दिनों शायद फिर दिल्ली
में एनडीटीवी में हैं।
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