Sunday, June 8, 2008

गलती करे जोलहा, मार खाये गदहा

लेखक - विचित्र मणि

थोडे असमंजस, थोड़ी ना-नुकूर और थोड़ी फुसफुसाहट के साथ ही सरकार ने पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोत्तरी कर ही दी। कितना किया, अब उस दुखती रग को छेड़ने से क्या फायदा। लेकिन सरकार के फैसले ने विपक्ष को तो छेड़ ही दिया। सरकार को समर्थन देने वाली कम्युनिस्ट पार्टियां उस लैला की तरह हो गयीं, जो जमाने के आगे तो मजनूं को भला बुरा कहती है लेकिन दुनिया की आड़ में उनका प्रेमालाप बदस्तूर जारी रहता है। आखिर क्या करें, खुद को जब कम्युनिस्ट कहना है तो जनवादी तो दिखना ही पड़ेगा। हों या ना हों, इसके क्या फर्क पड़ता है। इसे लोकतंत्र की बदनसीबी ही कहेंगे कि यहां कुछ करने से कुछ कर दिखाने का ढिंढोरा ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। बेचारी कम्युनिस्ट पार्टियों ने भी कोलकाता में बंद रखकर ये मान लिया कि पेट्रोल-डीजल की बढ़ोत्तरी पर उसने अपना कर्तव्य निबाह लिया। उन्हें ये नहीं दिखता कि पेट्रोलियम पदार्थों पर आंध्र प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा बिक्री कर पश्चिम बंगाल सरकार ही लगाती है, जहां लाल क्रांति वाले कम्युनिस्टों का परचम बीते ३१ साल से लहरा रहा है। लेकिन सबसे नाटकीय और अमानवीय विरोध रहा भारतीय जनता पार्टी का।

भाजपा नेता वेंकैय्या नायडू ने बैलगाड़ी की सवारी की तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अपने मंत्रियों के साथ साइकिल पर चलते दिखे। हद तो भाजपा की एक व्यापारिक शाखा ने कर दी। उसने मारुति ८०० कार को दो गधों से जोत दिया। बेचारे गधे तथाकथित इंसानों के बीच हक्के बक्के कार को खींच रहे थे। वो मन में सोच रहे होंगे कि गलती तो मनमोहन सिंह और मुरली देवड़ा की है, खामियाजा हम भुगत रहे हैं।

आखिर उन गधों की गलती क्या थी? आपको कार पर चलना है या नहीं चलना है, उससे गधों और बैलों का क्या लेना-देना ? सरकार के पेट्रोल डीजल की कीमतें बढ़ाने से आप कार से उतरकर बस या पैदल हो गये, उसमें उन निरीह पशुओं की क्या गलती है? गधे और बैल तो सही मायने में श्रम के प्रतीक हैं। इस खेती प्रधान देश में उनकी बड़ी जरूरत है। निश्छलता, कर्मठता और स्वामिभक्ति की उनकी प्रवृति का आदर किया जाना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि देश-भक्ति की ढोल पीटने वाली बीजेपी उन महान मूल्यों की कीमत नहीं जानती। वक्त के मुताबिक एक प्रचलित कहावत को बदलकर कहें तो गलती तो जोलहा ने किया, मार बेचारा गदहा खा रहा है।

वजह साफ है कि उस हवा हवाई पार्टी में जमीन का दुख-दर्द समझने वाला कोई नहीं है। कायदे से तो उम्र के आखिरी पड़ाव पर ही सही, बीजेपी के प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी को चाहिए कि खेती-बाड़ी वाले इस देश को ठीक से जानने की कोशिश करें और हो सके तो वेंकैय्या नायडू और दूसरे अपने नेताओं को भी ये नेक सलाह दें। वैसे एक बात और जोड़ दूं कि ये बात कांग्रेस पर भी लागू होती है। आखिर भाजपा कांग्रेस का ही तो विस्तार है। कैसे? इसकी चर्चा बाद में होगी।

5 comments:

Rajesh Roshan said...

मुझे राजनीति नही भाती. लेकिन उसके बावजूद अगर आपने लिखा है और मैं टिपण्णी दे रहा हू तो एक बात पूछना चाहूँगा तीसरे पारे की अन्तिम पंक्ति कहती है गलती की मनमोहन और मुरली देवड़ा ने, कैसे आप बता पाएंगे??? वह आप होते तो क्या करते, ये बता पाएंगे...??? ओपेक का रवैया और अंतराष्ट्रीय बाजार में वायदा बाजार का खेल कच्चे तेल को १६० डालर तक पहुँचा देगा. अगर सरकार फ़िर तेल के दाम बढ़ने को मजबूर होती है तो मुझे फ़िर इसमे कोई गलती जैसी बात नजर नही आएगी...

समरेन्द्र जी आपके जवाब का इंतजार रहेगा ...

Suresh Gupta said...

राजेश रोशन जी, आपके सवाल का जवाब कौन देगा? पंक्ति है - "वो मन में सोच रहे होंगे कि गलती तो मनमोहन सिंह और मुरली देवड़ा की है, खामियाजा हम भुगत रहे हैं।" यहाँ पर 'वो' हैं दो गधे जो कार खींच रहे हैं.

समरेंद्र said...

राजेश जी जब सबकुछ बाज़ार पर छोड़ा जाएगा तो ये बाज़ार हर चीज की कीमत अपने हिसाब से वसूलेगा. वही हो रहा है. आप पूछ रहे हैं कि सरकार के पास क्या कोई रास्ता बचा था या नहीं? रास्ता सीधा और सपाट है. केंद्र और राज्य सरकारें पेट्रोल और डीजल पर भारी कर लगाती हैं. दाम में भारी बढ़ोत्तरी के बाद दिखावे के लिए कोई राज्य चा फीसदी तो कोई पांच फीसदी टैक्स घटा रहा है. फिर भी ये टैक्स बहुत ज्यादा है. २०-२५ फीसदी से भी ज्यादा. अगर इस टैक्स में और कटौती की जाए तो सारी दिक्कत कम हो जाती है. लेकिन सरकार को तो चिदंबरम जैसे लोगों ने पैसे छापने की मशीन बना दिया है. उन्हें लोगों की परवाह की कहां है. पैसा बनाने की सरकार की यही प्रवृति आम लोगों पर भारी पड़ रही है.

Rajesh Roshan said...

....इसलिए राजनीति मुझे नही भाती. ये नाटक टू समझ में आ ही रहा है की पहले बढाओ फ़िर अपील करो और फ़िर वो अपने स्तर से कम कम कर देंगे लेकिन बात यह नही है... पिछले २ साल में कच्चा तेल २४० फीसदी बढ़ गया है. और पेट्रोल और डीजल में नाम मात्र की बढोतरी हुई है 47 और ४३ फीसदी की. जब कच्चा तेल बढ़ रहा था तब तो आपने नही कहा कि सरकार को तेल कि कीमत थोडी बढ़ा देनी चाहिए. या राज्य सरकार को थोडी रियायत देनी चाहिए. रियायत देना हमारे बस में है लेकिन कच्चा तेल....

Rajesh Roshan said...

आपके चैनल में मुकाबला आएगा इसी मुद्दे पर. दोपहर ३ बजे. किसी की बात नही सुनियेगा सिवाय एक के प्रोंजय गुहा ठाकुरता के. मैं समझाता हू की उनका वक्तय किसी का पक्ष नही लेगा, न विपक्ष का ना सरकार का

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