Saturday, June 14, 2008

ब्लॉग की दुनिया के गिद्ध

दिलीप जी ने मुझे गिद्धों से आगाह किया है। ब्लॉग की दुनिया के गिद्धों से आगाह। आपने कुछ लिखा नहीं कि ये गिद्ध जुटने लगते हैं। ठीक वैसे ही जैसे किसी शख्स के घायल होने पर गर्म खून की गंध सूंघ कर गिद्ध उसे घेर लेते हैं। सिर पर मंडराने लगते हैं। आतंकित करने लगते हैं। तब तक, जब तक कि उसकी आखिरी सांस नहीं निकल जाती। वो दम नहीं तोड़ देता। उसके बाद गिद्ध उसे नोच कर खा जाते हैं। शेष रह जाता है, हड्डियों का एक ढांचा जिसे देखने पर कोई भी सिहर उठे। जहां तक ब्लॉग की दुनिया के गिद्धों का सवाल है, वो संजीदा लेखकों को लड़ाने-भिड़ाने का काम करते हैं। कोई बात नहीं हो तो भी भड़काने और उकसाने का काम करते हैं। ये उस बात में यकीन रखते हैं कि बार बार एक ही झूठ उस वक्त तक बोलो कि वो सच लगने लगे। उसके बाद ब्लॉग पर छिड़ी जंग को देखो और ठहाके लगाओ।

ब्लॉग की दुनिया के इन गिद्धों का एक खास चरित्र है। पहला चरित्र तो ये कि ये गिद्ध आपको हर जगह नज़र आएंगे। चाहे बहस मीडिया पर हो, समाजिक और आर्थिक मुद्दों पर हो या फिर विज्ञान और धर्म पर हो। गिद्ध हर जगह मौजूद हैं। गिद्धों का काम है शीर्षक देख कर एक कमेंट चिपका देना। पोस्ट को बिना पढ़े, शब्दों और पंक्तियों के बीच के अर्थ को बिना समझे ये टिप्पणी दे आते हैं। ऐसे ही कुछ गिद्धों ने मेरे पोस्ट दिलीप जी और विनीत मुझे माफ कर दें, प्लीज पर भी कमेंट किया है।

मसलन, एक शख्स कहते हैं कि तुमने माफी क्यों मांगी? इससे व्यक्ति का लिजलिजापन झलकता है। अरे जनाब, आपने सही से पढ़ा नहीं। मैंने अपने विचारों के लिए माफी नहीं मांगी। माफी मांगी कि शायद मैं बेहतर नहीं लिख सका और बात का गलत अर्थ निकाला गया। अगर एक लेखक के तौर पर मुझसे चूक हुई, तो मुझे माफी मांगनी ही चाहिये। अगर चूक नहीं हुई है तो जिन्होंने उसका गलत मतलब निकाला वो सुधार करेंगे। कुल मिलाकर मैंने बहस को गलत राह पर मुड़ने से बचाने के लिए माफी मांगी है और ये मैंने दो जगह पर साफ शब्दों में लिखा। लेकिन गिद्ध की नज़र उन पंक्तियों पर पड़ी ही नहीं।

ये सिर्फ उदाहरण भर है। ऐसे कई गिद्ध हैं जिन्होंने मेरे और दिलीप जी के लिखे पर ऐसी ही टिप्पणियां की हैं। कुछ तल्खी की वजह पूछते हैं? पूछते हैं कि कहीं ये निजी झगड़ा तो नहीं? उन गिद्धों को मैं साफ कर दूं कि कहीं कोई तल्खी नहीं। कहीं कोई झगड़ा नहीं। मैं अब भी दिलीप जी के दफ्तर में जाता हूं तो उनसे लंबी बात होती है। सामाजिक मुद्दों के साथ मीडिया और करियर से जुड़े मुद्दों पर भी। हम दोनों इस राय में इस्तेफाक रखते हैं कि दो लिखने वालों के बीच इतना स्पेस जरूर होना चाहिये कि वो अपने विचारों को बेबाक अंदाज में पेश कर सकें। मतभेद गहरे होने पर मर्यादित भाषा में एक दूसरे के तर्कों को काट सकें। दिलीप जी ने इसका जिक्र भी किया है। लेकिन गिद्धों की नज़र उस पर नहीं पड़ी।

आखिर में, मैं यही कहूंगा कि ब्लॉग की दुनिया में मैं बहुत पुराना न सही, बहुत नया भी नहीं हूं। बीते एक साल में अनियमित तौर पर ही सही ब्लॉग से जुड़े रहने पर, मैं भी इन गिद्धों को पहचानने लगा हूं। इसलिए दिलीप जी, आप ज़रा भी परेशान मत हों, यहां इन गिद्धों को दाल नहीं गलेगी। हमें एक दूसरे के सामने शर्मिंदा होना पड़े, ऐसी नौबत नहीं आएगी।

(( मैं अभय तिवारी जी का बहुत शुक्रगुजार हूं। मैं जो कहना चाहता था, उसे उन्होंने अपनी टिप्पणी में और साफ कर दिया। सच भी यही है, मैं पूरब और पश्चिम की बहस को खत्म करना नहीं चाहता। वैसे भी मेरे खत्म करने से शदियों से चली आ रही ये बहस खत्म नहीं होगी। इसलिए अच्छा यही रहेगा कि हम पूरब और पश्चिम की अच्छाइयों और बुराइयों पर छिड़ी बहस को जारी रखें। इसी बहाने हम समाज में हो रहे कुछ तेज बदलावों से एक दूसरे को अवगत कराएंगे।))

3 comments:

Rajesh Roshan said...

समरेन्द्र के बारे में जैसा सुना था वैसा ही नही उससे भी अच्छे निकले. बहुत अच्छे... गिद्ध चेतन इंसान को छूता भी नही है, वो केवल मरे हुए लोगो का मांस नोचता है और जो मारा हुआ है उसके बारे में बात करना... आगे की बात करे... आपको ढेरों बधाई

Kath Pingal said...

राजेश रोशन भी एक गिद्ध है समरेंद्र। इससे पहले की पोस्‍ट पर इसने बिना पढ़े कमेंट किया, और अब देखो कैसे चापलूसी पर उतर आया है। बचना भाई, बचना।

बिक्रम प्रताप सिंह said...

आपने बहुत अच्छा लिखा। वैसे कमेंट्स देख कर दुख हुआ। ये तो घिनौनेपन की हद है। दूसरे को नाम लेकर गाली देते हैं और अपना नाम छुपा कर रखते हैं।

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