Tuesday, May 29, 2007

इस गांधीगीरी से बचाओ

कुछ लोग कभी नहीं सुधरते। चाहे जमाना इधर का उधर हो जाए। संजय दत्त भी एक ऐसा ही इंसान है। उसका स्लोगन ही है कि "हम नहीं सुधरेंगे"। इसका ताजा उदाहरण है टीवी पर रूपा अंडरगारमेंट का एक प्रचार। उसमें अपनी जवान बेटी के साथ सैर पर निकला शख्स अचानक एक टपोरी से टकरा जाता है। ये टपोरी शर्ट के सभी बटन खोल कर... बनियान दिखाता हुआ... चौड़ा होकर सड़क पर तफरी कर रहा है। अचानक हुई इस टक्कर से बौखलाया शख्स कहता है कि "ये क्या गुंडागीरी है"। जवाब में वो टपोरी कहता है कि "ये गुंडागीरी नहीं गांधीगीरी है बाबा"। साथ ही रूपा का बनियान दिखाता है और फिर उस शख्स को प्यार की एक झप्पी देता है। तपाक से उस अधेड़ शख्स की बेटी कहती है कि "मेरी झप्पी"। आप सोच रहे होंगे कि इस का संजय दत्त से क्या लेना देना। दरअसल इस विज्ञापन में टपोरी के किरदार में संजय दत्त है। ये वही संजय दत्त से जो लगे रहो मुन्नाभाई में पूरे देश को गांधीगीरी का सबक सिखाता नजर आता है। वो भी उस दौर में जब १९९३ बम धमाकों में टाडा अदालत में उसके खिलाफ सुनवाई पूरी हो चुकी थी और फैसला आना था। उन सीरियल बम धमाकों में २५० से ज्यादा लोग मारे गए थे और १००० के करीब जख्मी हुए थे। ये अब तक का सबसे बड़ा मुकदमा माना जाता है। इसमें नरगिस और सुनील दत्त जैसे भले लोगों की संतान संजय दत्त पर अवैध तौर पर हथियार रखने का आरोप था। साथ ही आतंकवादियों से साठगांठ का आरोप भी। टाडा अदालत फैसला सुनाए इससे पहले ही लगे रहो मुन्नाभाई में इस टपोरी की गांधीगीरी देखने के बाद देश में इसके समर्थन में एक माहौल सा बन गया। सुनील दत्त का कुछ ही समय पहले देहांत हुआ था तो सहानभूति की लहर पहले से ही चल रही थी। वो लहर लगे रहो मुन्नाभाई के बाद और तेज हो गई। संजय दत्त के समर्थक जहां तहां यही कहते पाए गए कि उसने चरस लेनी बंद कर दी है और अब मारपीट भी नहीं करता। हथियारों से भी उसने तौबा कर लिया है और आतंक के सौदागरों से भी। अब तो वो इतना सुधर गया है कि गांधीगीरी करने लगा है। इसलिए उसकी सजा माफ कर देनी चाहिये। लेकिन पुरानी कहावत है कि चोर चोरी से जाए हेराफेरी से ना जाए। संजय दत्त भी उसी फितरत का आदमी है। कम से कम रूपा के प्रचार से तो यही साबित होता है। जब वो शख्स गांधीगीरी से एक आदर्श छवि बनाने के बाद उसी गांधीगीरी को एक कंपनी के प्रचार के लिए बेच सकता है तो वो शख्स अपनी जरूरत के वक्त किसी भी स्तर तक उतर सकता है। यहां उसके समर्थक ये कह सकते हैं कि गांधीगीरी एक फिल्म का जुमला है। उस जुमले को संजय दत्त अगर प्रचार में इस्तेमाल कर रहा है तो क्या हर्ज है। बात सही है। लेकिन कुछ दिनों पहले जब इस शख्स से ये सवाल पूछा गया कि आपने गांधीगीरी के बहाने गांधी की विचारधारा को फिर से जनता के बीच पहुंचा दिया। तब इस शख्स ने कहा था कि "मेरे मां-बाप दोनों गांधीवादी थे। वो मुझे इस बारे में बताते थे, लेकिन तब मैंने इसके महत्व को नहीं समझा। अब मैं जान गया हूं कि वो दोनों सही थे। मैंने इसे अपनी जिंदगी में लागू भी किया है और इसकी ताकत को शिद्दत से महसूस करता हूं।" ... जाहिर है कि गांधी को भी इस शख्स ने अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया है और गांधीगीरी को भी। चाहे वो जनता से सहानभूति हासिल करना हो या फिर बाजार से पैसा। ऐसे में तो यही लगता है कि जो लोग भी ऐसे टपोरी (जो गांधीगीरी का पाखंड करते हैं) के प्रति हल्की सी सहानभूति रखते हैं वो भी उसके अपराध में बराबर के हिस्सेदार हैं।

((अगले अंक में एक ऐसे शख्स की चर्चा ... जो पूरी दुनिया में संघर्ष की नई पहचान बन रहा है। अमेरिका और उसके आतंकी मंसूबों के खिलाफ संघर्ष की पहचान। उस शख्स से हम सभी बहुत कुछ सीख सकते हैं।))

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