Thursday, May 29, 2008

अंकों का बोझ

आज सुबह आठ बजे दसवीं के नतीजे आए। उस समय मैं दफ्तर में था और वहां से नौ बजे के करीब घर पहुंचा। तब तक मेरा भाई अपना नतीजा जानने के लिए कई फोन कर चुका था। परीक्षा के बाद वो छुट्टियां बिताने के लिए गांव चला गया। मेरी तरह उसे भी गांव काफी पसंद है। बलिया जिले का चौरा कथरिया गांव। सड़क के शोर से एक कोस दूर। बस से उतरने के बाद खड़ींजा पर गांव की तरफ बढ़ते हुए पहले खेत पड़ते हैं... फिर बगीचे और उसके बाद आबादी। बगीचे और आबादी के बीच करीब दो सौ मीटर की परती है। परती में कुछ बड़े गड्ढे और उन गड्ढों के बीच में पतली पतली पगडंडियां। उन्हों पगडंडियों से होकर हम लोग करीब पंद्रह फुट की ऊंचाई पर बसे गांव में दाखिल होते हैं। हमारा घर गांव के बाहरी छोर पर है। इसलिए दुआर से आबादी नहीं परती, बगीचे और खेल खलिहान नज़र आते हैं। वो खेत खलिहान और बगीचे जिन्हें देखने के लिए आंखें हर वक्त तरसती रहती हैं। अरे ये क्या? मैं लिखने बैठा था दसवीं के नतीजों पर और गांव का ब्योरा देने लगा।घर पहुंचते ही कंप्यूटर ऑन किया, लेकिन इंटरनेट ने धोखा दे दिया। फिर दोस्त विचित्र मणि को फोन किया और भाई का रोल नंबर नोट कराया।

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http://dreamndesire.blogspot.com/2008/05/blog-post_29.html

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