आज एक ख़बर आई। अमेरिका के न्यू आर्सलेंस प्रांत से। भारतीय मजदूरों की बेबसी से जुड़ी हुई। वहां पर एक कंट्रक्शन कंपनी ने पांच सौ से ज्यादा भारतीय मजदूरों पर कहर बरपाया है। इन मजदूरों को भारत के ही एक दलाल ने रहने और खाने के अच्छे इंतजाम और अच्छी तनख्वाह का लालच देकर अमेरिका पहुंचाया। लेकिन अब वहां पर उनके साथ बंधुआ मजदूरों जैसा बर्ताब हो रहा है। तीन सौ वर्ग फुट के कमरे में २५-२५ मजदूर रहने को मजबूर हैं। खाने-पीने का बंदोबस्त भी बुरा। यही नहीं विरोध करने पर कंपनी के गुंडे उनकी पिटाई भी करते हैं और पुलिस तमाशा देखती रहती है। न्याय के लिए वो मजदूर पिछले १६ दिन से भूख हड़ताल पर बैठे हैं। मानवाधिकार संगठनों के जरिये उन्होंने भारत के हुक्मरानों तक भी अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की है। लेकिन हमारी सरकार खामोश हैं। मनमोहन सिंह चुप हैं। सोनिया गांधी भी चुप हैं।
कुछ दिनों पहले सूडान में चार भारतीयों के अपहरण की खबर आई थी। तब एक साथी ने कहा कि ऐसी ख़बरें दिखाने की क्या ज़रूरत है? लोग पैसे के लालच में वतन छोड़ कर चले जाएं और मुसीबत में फंसे तो सरकार मदद करे? ये भी कोई तुक है? पहली नज़र में सवाल सही लगते हैं। लेकिन सही हैं नहीं। दरअसल किसी भी देश से दो तबके के लोग नौकरी के लिए विदेश जाते हैं। एक तबका इंजीनियर, डॉक्टर, मैनेजर, वैज्ञानिक जैसे पढ़े लिखे लोगों का है और दूसरा मजदूरों का तबका। पहला तबका अपने सपनों को, महात्वाकांक्षाओं को नया आयाम देने के लिए जाता है। दूसरा रोजी रोटी की तलाश में, अपना और परिवार की जरूरतों को पूरा करने की कोशिश में।
हम अपने लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरी करने लायक गुंजाइश भी पैदा नहीं कर सके हैं, तो ये हमारे देश, हमारे हुक्मरानों और हमारी व्यवस्था की कमजोरी है। एक ऐसी कमजोरी जो किसी भी सम्प्रभु राष्ट्र के लिए शर्म की बात है। ऐसे में अगर लोग रोजी रोटी की तलाश में विदेश जाते हैं और वहां उनके साथ कुछ बुरा होता है तब खामोश रह कर हम सम्प्रभु राष्ट्र होने की एक और शर्त पर खरे नहीं उतरेंगे। ये अपने लोगों के साथ दोहरा विश्वासघात होगा। फिलहाल हमारी सरकार चुप रह कर अमेरिका में न्याय के लिए लड़ रहे अपने उन पांच सौ से ज्यादा नागरिकों और उनके घरवालों के साथ यही दोहरा विश्वासघात कर रही है।
तारीख - ३० मई, २००८
वक़्त - १०.30
1 comment:
वाकई दुखद है ...हैरान हूँ ब्रेकिंग न्यूज़ वालो को ख़बर नही हुई.....?
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