Friday, June 29, 2007

कोमा में भारतीय क्रिकेट

हमारे साथी अभिषेक दुबे ने बड़ी तेजी से खेल पत्रकारिता में अपनी पहचान बनाई है। कई साल तक डेस्क पर काम करने के बाद जब उन्हें टीवी पर आने का मौका मिला तो वो पूरी तरह छा गए। क्रिकेट पर वो किताब लिख चुके हैं और उन्हें करीब से जानने वाले ये मानते हैं कि खेल को लेकर उनकी समझ और जानकारी ज्यादातर खेल पत्रकारों से बेहतर है। यही वजह है कि मैंने उनसे क्रिकेट के मौजूदा हालत पर कुछ लिखने की गुजारिश की। साथी अभिषेक ने मेरी गुजारिश कबूल कर ली। बीसीसीआई अध्यक्ष शरद पवार के नाम इस चिट्ठी से वो चौखंबा पर दस्तक दे रहे हैं।

जरा सुनिये “केपीएस” पवार साहब,
ये क्या हो रहा है? मरीज बीमार है और रिश्तेदार और मित्र बेहाल है। दो साल पहले तक यही शख्स जोश से भरा हुआ था। तंदरुस्त था। लंबी चौड़ी छलांगे लगाता था। दुश्मनों के छक्के छुड़ाता था और हर किसी को अपने अंदाज से दीवाना बना देता था। लेकिन जबसे इसे संभालने और सही दिशा देने की जिम्मेदारी आपके हाथ में गई है, इसकी हालत बिगड़ती ही जा रही है। पिछले तीन महीने में तो सेहत इतनी खराब हो गई है कि मरीज आईसीयू में पहुंच गया है। कोमा में है। लेकिन इसका इलाज कराने वाला कोई नहीं। आखिर ये हो क्या रहा है?
पवार साहब, आप ये तो नहीं बोल सकते कि इस मरीज के इलाज के लिए आपके पास पैसे नहीं। भाई, आप भारतीय क्रिकेट नाम की जो दुकान चला रहे हैं, उसकी कमाई करोड़ों में नहीं अरबों में हैं। टीवी राइट्स से पैसा। स्पॉन्सरशिप से पैसा। दर्शकों से पैसा। न्यूट्रल मैदानों में एक के बाद एक मैच कराने से पैसा। आपके पास तो ऐसी मुर्गी है जो दनादन सोने का अंडा दे रही है। उसके अलावा आपके पास ललित मोदी जैसा शख्स भी है। जिनका बस चले तो मिट्टी को भी सोने के भाव बेच दें। फिर ऐसी क्या बात हो गई है कि मरीज का इलाज नहीं हो पा रहा?
पवार साहब, आप ये भी नहीं कह सकते कि ये मरीज बाहर से भले ही तंदरुस्त दिखे लेकिन असल में शुरू से ही कमजोर था। आपके अध्यक्ष बनने से पहले, आज का ये मरीज, एक दमदार नौजवान था। इसी ने वर्ल्ड कप 2003 में फाइनल तक का सफर तय किया। इसी ने ऑस्ट्रेलिया को उसकी मांद में जाकर चुनौती दी थी। इसी ने पहली बार पाकिस्तान को उसकी ही सरजमीं पर टेस्ट और वनडे में धूल चटाई। इसी ने इंग्लैंड और वेस्टइंडीज में जाकर सीरीज बराबर की। आज इसके जो हाथ पांव खराब पड़े हैं ... मैदान में उतरने के साथ ही कांपने लगते हैं ... कुछ दिनों पहले तक यही हाथ पांव एक झटके में दुश्मन को पटक देते थे। चंद दिनों में ही इतना कुछ बदल गया, आखिर कैसे?
पवार साहब, आपको ये शिकायत करने का हक भी नहीं है कि आपको मनमुताबिक टीम इंडिया चुनने की आजादी नहीं मिली। सच तो ये है कि आप भले ही अध्यक्ष हैं भारतीय क्रिकेट बोर्ड के, लेकिन ऐसा लगता है कि आप महाराष्ट्र क्रिकेट बोर्ड चला रहे हैं। राजनीति में आप चाहकर भी महाराष्ट्र से बाहर पहचान नहीं बना सके। वही हाल खेल में भी है। यहां भी आप महाराष्ट्र और पश्चिमी जोन के बाहर सोच नहीं पा रहे हैं। अगर भरोसा ना हो तो अपने सिपाहसलारों की सूची पर नजर दौड़ाएं। सीईओ रत्नाकर शेट्टी मुंबई के हैं तो उपाध्यक्ष और कांट्रैक्ट समिति के अध्यक्ष शशांक मनोहर नागपुर के रहने वाले। निरंजन शाह राजकोट के हैं तो मुख्य चयनकर्ता दिलीप वेंगसरकर मुंबई से। कोच की खोज समिति के तीन सदस्यों में से दो सुनील गावस्कर और रवि शास्त्री मुंबई से। बांग्लादेश दौरे के लिए मुंबई के रवि शास्त्री क्रिकेट मैनेजर बनाए गए तो ऑयरलैंड-इंग्लैंड दौरे के लिए पुणे के चंदू बोर्डे को क्रिकेट मैनेजर चुना गया। सवाल उठता है कि क्या देश के किसी और हिस्से में काबिल लोग हैं ही नहीं? आखिर माजरा क्या है?
पवार साहब, बात निकली है तो दूर तक जाएगी ही। सौरव गांगुली ने भारतीय क्रिकेट को क्षेत्रवाद के चंगुल से निकाला था, लेकिन आपने इसे फिर से उसी दलदल में ढकेल दिया। आखिर क्या सोच कर 34 साल के सचिन तेंदुलकर को अचानक टीम का उपकप्तान बना दिया गया? तेंदुलकर के जितने बड़े आप फैन हैं उससे शायद अधिक मैं हूं, लेकिन वर्ल्ड कप से ठीक पहले कप्तान द्रविड़ पर ये दबाव बनाना कि तेंदुलकर उनकी जगह ले सकते हैं कहां तक सही था? आखिर किस आधार पर वसीम जाफर को वनडे टीम में शामिल किया गया? कैसे राजेश पोवार बांग्लादेश में टेस्ट टीम में शामिल कर लिए गए? आखिर क्यों वीरेंद्र सहवाग के कोच ये आरोप लगाने को मजबूर हो रहे हैं कि पश्चिमी लॉबी ने सहवाग को खत्म करने के लिए युवराज सिंह का इस्तेमाल किया? चलिये एक मिनट के लिए मान लेते हैं कि वो अंधेरे में तीर चला रहे है, लेकिन आग के बिना धुआं कैसे उठ सकता है? ये तो आप भी मानेंगे की वर्ल्ड कप में पहले सहवाग को चुना गया। उसके बाद आपके मुख्य चयनकर्ता ने कहा कि कप्तान द्रविड़ के दबाव में सहवाग को चुना गया है। मान लिया कि आपने कभी गंभीर क्रिकेट नहीं खेला, लेकिन कर्नल वेंगसरकर तो खेल चुके हैं। कम से कम उन्हें तो ये अंदाजा होना चाहिए कि अहम मुकाबले से पहले किसी बल्लेबाज पर दबाव बनाना सही नहीं। फिर उनसे ये गलती कैसे हो गई?
पवार साहब, आपके सिपाहसलार हर चीज के लिए मीडिया को दोषी बताते है। लेकिन वे अपनी गिरेबां में झांककर क्यों नहीं देखते। इसमें हमारी क्या गलती कि निंबस हो या फिर जी स्पोर्ट्स, पहले हर किसी से करार होता है और फिर करार फेल हो जाता है। इसमें मीडिया कि क्या गलती कि कांट्रैक्ट मुद्दे को लेकर विवाद महीने चलता है और क्रिकेटरों को आठ महीने तक मैच फीस नहीं मिलती। चलिए, तेंदुलकर, द्रविड़, सौरव और धोनी विज्ञापन से मोटी कमाई करते हैं। लेकिन मुनाफ पटेल, पीयूष चावला, श्रीशांत और रोमेश पोवार जैसे क्रिकेटरों का क्या होगा जो नए हैं और मैच फीस पर ही निर्भर हैं। प्रसारण अधिकार का मसला हो या फिर कोच और टीम के चयन का, टीम इंडिया के खेल की बात हो या फिर खिलाड़ियों से करार की- आप और आपके सिपहसालार हर मोर्चे पर नाकाम साबित हो रहे हैं। आखिर माजरा क्या है?
पवार साहब, आपके मन में होगा कि काश, टीम इंडिया आयरलैंड और इंग्लैंड में अच्छा खेले जिससे कि विरोधियों की जुबां पर ताला लग जाए। मेरा भी दिल यही चाहता है, लेकिन दिमाग नहीं मानता। मौजूदा टीम इंडिया से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद करना भी गुनाह है। आखिर आपने किस तैयारी से भेजा इस टीम को। कांट्रैक्ट को लेकर क्रिकेटरों को अंतिम वक्त तक तनाव में रखा। अहम दौरे के लिए रवाना होने से पहले तक इस बात को लेकर सस्पेंस बरकरार रहा कि आखिर कोच कौन होगा। भारतीय क्रिकेट के चाणक्य गावस्कर ने एजेंडा चलाने के चक्कर में डेव व्हॉटमोर का पत्ता तो साफ कर दिया, लेकिन बदले में कोई विकल्प नहीं सुझाया। गावस्कर और उनके साथियों के रंगढंग देख कर ग्राहम फोर्ड को अंदाजा मिल गया कि बीसीसीआई सर्कस में शामिल होकर काम करना कितना मुश्किल होगा, इसलिए उन्होंने भी इनकार कर दिया। भरी तिजोरी के बावजूद जब आप स्थायी कोच नहीं चुन सके, तो आपने 73 साल के चंदू बोर्डे को क्रिकेट मैनेजर बना दिया। आखिर ये क्या हो रहा है?
पवार साहब, वर्ल्ड कप में हार के बाद खेलप्रेमियों का गुस्सा शांत करने के लिए आपने मुंबई में दो दिन बैठक की। लंबे चौड़े वादे किए। घरेलू क्रिकेट को बदल कर रख दूंगा। युवा टीमें तैयार होंगी। हर टीम को फीजियो और ट्रेनर दिया जाएगा। क्रिकेटरों के विज्ञापन पर लगाम लगेगी। प्रदर्शन के आधार पर क्रिकेटरों को पैसा मिलेगा। लेकिन धुर नेता की तरह चंद ही दिनों में सारे वादे भूल गए। जिस तरह से कृषि मंत्री के तौर पर आप किसानों के साथ विश्वासघात कर रहे हैं, ठीक उसी तरह बीसीसीआई अध्यक्ष के तौर पर खेलप्रेमियों को धोखा दे रहे हैं। आखिर ये कब तक चलेगा?
पवार साहब, माना कि आपके हाथों में सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है, लेकिन ये मुर्गी ही मर गई, तो फिर आप और आपके सिपाहसलारों का क्या होगा? जिस तरह से आपके सिपाहसलार काम कर रहे हैं, किसी भी दिन इस मुर्गी के मरने की खबर आ सकती है। अगर खेलप्रेमियों के लिए नहीं तो कम से कम अपने सिपाहसलारों के लिए तो इस मुर्गी को बचाईए। जड़ें खोदने का जो काम के पी एस गिल ने भारतीय हॉकी संघ के लिए किया वही काम आप भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के लिए कर रहे हैं। ऐसे में आपको केपीएस पवार कहना क्या गलत होगा? अगर बुरा लग रहा है तो गुस्ताखी माफ करें, लेकिन कहते हैं कि सच बहुत कड़वा होता है।

भवदीय
अभिषेक दुबे

2 comments:

Sanjeet Tripathi said...

झकास!! इसे पवार साहब तक पहुंचाया जाए!!

Anonymous said...

isse behtar tareeke se bhartiya cricket kee maujooda sachaayee ko saamne naheen rakhaa jaa sakta. Pawar sahab jawaab do

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