आरुषि हत्याकांड का सच सामने आ गया. गुत्थी सुलझ गई. डॉक्टर तलवार बेकसूर घोषित कर दिये गए. बिना सबूत फ़ैसला सुना दिया गया. हर तरफ सीबीआई की वाहवाही होने लगी. सबने मान लिया कि करीब दो महीने तक चले घिनौने नाटक से पर्दा गिर गया. हर चैनल अपने अपने हिसाब से दावा करने लगा कि उसने तो क़ातिलों को बेनकाब काफी पहले कर दिया था. जिस सच को सीबीआई ने इतने दिन बाद जाहिर किया वो सच तो पहले ही बता दिया था. लेकिन यहां भी सब वही ग़लती कर रहे हैं. सीबीआई के सच को अंतिम सच मान बैठे हैं. ये भूल गए हैं कि सच तो उत्तर प्रदेश पुलिस ने भी बताया था. उसकी थ्योरी अब पलट चुकी है और उसका सच झूठा निकला. ऐसे में क्या गारंटी है कि सीबीआई का खुलासा अंतिम सत्य हो? सबको मालूम है कि पीड़ितों को इंसाफ़ दिलाने में सीबीआई का ट्रैक रिकॉर्ड भी काफी बुरा है, फिर इस पर आंख मूंद कर यकीन की वजह क्या?
यहां नैतिकता का हवाला भी दिया जा रहा है. टीवी चैनलों को गालियां दी जा रही हैं. अख़बार से लेकर समाज का हर तबका लानत-मलानत करने में जुटा है. कोई मुकदमा करने की धमकी दे रहा है तो कोई दावा कर रहा है कि अब वो न्यूज चैनल ही नहीं देखेगा. यहां सब भूल जाते हैं कि इन्हीं चैनलों ने सवाल उठाए तो जांच उत्तर प्रदेश की पुलिस से छीन कर सीबीआई को दी गई. वरना तो उत्तर प्रदेश पुलिस ने पहले ही दिन केस सुलझा दिया था. हेमराज को कातिल ठहरा दिया था. यही नहीं आज आरुषि का बाप जेल से बाहर निकला है तो उसकी रिहाई में उन चैनलों का हिस्सा है. लोग सीबीआई के जिस आधे-अधूरे सच को सही मान बैठे हैं उसमें भी चैनलों का योगदान है.
यहां यह भी ध्यान रखने की बात है कि नैतिकता हमेशा सापेक्ष होती है. आप और हम एकदम उलट होते हुए भी अपनी-अपनी जगह नैतिक हो सकते हैं. कल जो मीडिया आरुषि के घरवालों के अनैतिक था, वो कृष्णा, विजय और राजकुमार समेत बहुतों के लिए नैतिक था। आज जो मीडिया आरुषि के घरवालों के लिए नैतिक है वो आरुषि के तथाकथित नए क़ातिलों कृष्णा, विजय मंडल और राजकुमार के घरवालों के लिए अनैतिक हो सकता है. इसलिए यहां ये बहस भी ख़त्म नहीं हुई है कि नैतिक कौन है और अनैतिक कौन? ये बहस जारी है और आगे भी जारी रहेगी.
एक बात और ये भी नैतिकता से जुड़ी हुई. कहते हैं मीडिया समाज का आईना है. वो समाज को उसका चेहरा दिखाता है. सच भी यही है आज मीडिया के जिस चेहरे पर आपको घिन आ रही है, जिस चेहरे से आपको नफरत हो रही है, जिस चेहरे को आप कोस रहे हैं, समाज का चेहरा भी उतना ही घिनौना है. हमारा समाज भी उतना ही अनैतिक है. चाहे वो नैतिकता की दुहाई दे रहे आरुषि के मां-बाप हो या फिर हम और आप. जरा सोचिये बेटी को जो मां-बाप नौकर के भरोसे छोड़ जाते थे, उन्हें नैतिकता की दुहाई देने का कितना हक है? जिस मां-बाप के होते हुए चार शख़्स फ्लैट में घुसते हैं ... इस हद तक शराब पीते हैं कुछ होश ना रहे ... फिर बच्ची के कमरे में घुसते हैं... उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश करते हैं... विरोध करने पर उसके सिर पर चोट कर उसे बेहोश करते हैं... फिर वही चारों छत पर जाते हैं... वहां उनका झगड़ा होता है ... उनमें से तीन मिल कर चौथे का क़त्ल करते हैं ... और दोबारा फ्लैट में दाखिल हो कर बेहोश पड़ी बच्ची का भी खून करते हैं ... भारी नशे की हालत में होते हुए भी सारे सबूत मिटाते हैं और वापस चले जाते हैं ... अगली सुबह तक मां-बाप को इसकी भनक तक नहीं लगती ... वो मां-बाप कितने नैतिक रहे होंगे?
इसलिए मीडिया को एकतरफा गाली देने से पहले समाज के घिनौने चेहरे को भी देखियेगा ... ज्यादा नैतिकता का ढोल पीटने से पहले ये भी जरूर सोचियेगा कि कहीं इस चक्कर में आप भी तो अनैतिक तो नहीं हो रहे?
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