Thursday, July 10, 2008

ये सरकार नहीं गई तो देश जाएगा

एक हिंदुस्तानी ने अपनी डायरी में लिखा है कि यूपीए सरकार को सांसत से बचाएगा लेफ्ट? अगर ऐसा हुआ तो ये देश के लिए सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात होगी और इस दुर्भाग्य के लिए खुद लेफ्ट जिम्मेदार होगा. इस समय सियासी माहौल काफी ख़तरनाक मोड़ पर है. मनमोहन सरकार ने ऐटमी करार के नाम पर एक बड़ा सौदा किया है और वो इस सौदे को अंजाम तक पहुंचाने के लिए हर ग़लत हथकंडे अपना रही है.

उदाहरण के तौर पर दो दिन पहले विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने बयान दिया कि बिना विश्वासमत हासिल किए सरकार आईएईए में नहीं जाएगी. कायदे से होना भी यही चाहिये. लेफ्ट के समर्थन वापस लेने के बाद यूपीए सरकार अल्पमत में है. उसके बाद २७२ का जादुई आंकड़ा नहीं है. समाजवादी पार्टी के समर्थन के बावजूद ये आंकड़ा २७० तक ही पहुंचता है. ऐसे में नैतिकता का तकाजा यही कहता है कि मनमोहन सरकार पहले संसद का विश्वास हासिल करे और फिर करार पर आगे बढ़े. लेकिन ऐसा करने से पहले कल सरकार ने आईएईए से मसौदे को बोर्ड के सदस्यों के बीच बांटने का अनुरोध किया. भारत सरकार के अनुरोध के बाद वो मसौदा बोर्ड के ३५ सदस्य देशों को बांट दिया गया. ये वही मसौदा है जिसे मनमोहन सिंह ने देशहित में बता कर और गोपनियता का हवाला देकर लेफ्ट को दिखाने से मना कर दिया था. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इस करार पर अमल के लिए सरकार किस तरह जिद पर उतर आई है और उसकी ये जिद संदेह पैदा करती है.

इसके अलावा भी कई ऐसे कारण हैं जिन्हें ध्यान में रखते हुए इस सरकार का जाना ज़रूरी है. लेफ़्ट के समर्थन खींचने के बाद बाज़ार का व्यवहार काफी संदेहास्पद है. शेयर बाज़ार हर रोज छलांग पर छलांग लगा रहा है. आखिर इसका मतलब क्या है? दरअसल ये संकेत है कि अब सुधार के नाम पर सरकारी कंपनियां बेची जाएंगी... अब तक मुकेश अंबानी चांदी काट रहे थे अब अनिल अंबानी भी चांदी काटेंगे... नए-नए सेज के रास्ते खुलेंगे... किसानों को उनकी ज़मीन से बेदखल किया जाएगा... किसानों को दी जाने वाली सांकेतिक सब्सिडी ख़त्म होगी... विकास के नाम पर रेवड़ियां बांटी जाएंगी... कुल मिला कर कहें तो सारे सफेदपोश लुटेरे मिल कर अगले छह महीने में देश में जो कुछ भी बचा है उसे बेचने की तैयारी कर रहे हैं और सरकार बची तो वो इस पर अमल भी करेंगे.

इसलिए इस सरकार का जाना बहुत ज़रूरी है. सरकार के गिरने से एक साथ कई नापाक मंसूबों पर पानी फिरेगा. सरकार के गिरने से देश की सत्ता के शीर्ष पर बैठे अमेरिकी एजेंट मनमोहन और कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी को सबक मिलेगा. सबक कि देश की सर्वोच्च लोकतांत्रिक संस्था संसद को धोखे में रख कर कोई भी ऐसा करार नहीं करना चाहिये जिससे देश की दिशा बदल सकती हो. देशहित से जुड़े अहम फैसले आम राय से लिये जाते हैं .. एकतरफा नहीं.

सरकार के गिरने से एक और फायदा होगा। भारत से लेकर अमेरिका तक के दलालों को झटका लगेगा. खासकर अमर सिंह जैसे लोगों को. अमर सिंह ऐसा शख्स है जिसने उत्तर प्रदेश को गर्त में ढकेल दिया. हजारों हेक्टयर जमीन बिल्डरों के हाथ बिकवा दी. रोजगार के नए अवसर नहीं पनपने दिये. सियासत के नाम पर बॉलीवुड से भांटों को लखनऊ बुला कर सुब्रत राय के दरबार में मुजरा कराया है. अमिताभ बच्चन को लटकन बना कर कभी काशी तो कभी विंध्याचल घुमाया है. ऐसे दलालों के मंसूबों पर पानी फिरना बेहद जरूरी है. ऐसा नहीं हुआ तो उनके हौसले और बुलंद होंगे.

सरकार के गिरने से तीसरा सबक कारोबारियों को मिलेगा. उन्हें अहसास होगा कि देश में अब भी कुछ ऐसा है जो वो मैनेज नहीं कर सकते. इससे संसद की थोड़ी लाज बची रहेगी और लोकतंत्र की भी. वरना तो गुलाम मानसिकता के मनमोहन और उनके चेले पूरी नंगई पर उतर आए हैं और इस नंगई के लिए भी काफी हद तक लेफ्ट फ्रंट ही जिम्मेदार है. उसने शुरू से जरा सख्ती से चाबी भरी होती तो ऐसे दिन नहीं देखने पड़ते. वैसे भी पुरानी कहावत है बिल्ली पहली ही रात को मारी जाती है, बाद में नहीं.

2 comments:

Nitish Raj said...

भई, लिखा तो ठीक है लेकिन एसपी और यूपीए मिल कर 270 नहीं 263 होते हैं उसमें भीं कई पेंच हैं। खेल तो समरेंद्र मियां अब सौदे का है और इसमें अन्य के वारे-न्यारे हैं।

समरेंद्र said...

नीतीश भाई, ये आंकड़ों का खेल ही कुछ ऐसा है. अभी तो हर कोई अपने अपने हिसाब से जोड़ रहा है. आज हिंदुस्तान को देखिये उसमें यूपीए और समाजवादी पार्टी की कुल सीटें २७० बताई गई हैं. मैंने उसी को कोट किया है. जबकी एक हिंदुस्तानी ने अपनी डायरी में २६३ बताया है. कुछ लोग तो यहां तक जोड़ रहे हैं कि समाजवादी पार्टी के ५-६ सांसद सरकार के पक्ष में वोट नहीं डालेंगे. इस लिहाज से वो ये आंकड़ा २५७-२५८ बता रहे हैं. कुल मिला कर कहूं तो जो जैसा चाहता है उसके हिसाब से आंकड़े जोड़ रहा है. इसलिए मैं इस खेल में नहीं पड़ना चाहता. वैसे भी गणित में कमजोर रहा हूं. मैं बस ये कहना चाहता हूं कि अगर सरकार बची तो ये सारे मिल कर काफी कुछ बेच देंगे. इसलिए इस सरकार का गिरना बहुत जरूरी है.

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