पथभ्रष्ट होने की कोई उम्र नहीं होती. कोई बचपन में ही राह भटक जाता है तो कोई उम्र की आखिरी दहलीज पर. लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी अस्सी साल की उम्र में अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल करने जा रहे हैं. उन्होंने सीपीएम के आदेश को ठुकराते हुए लोकसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने से इनकार कर दिया है. ये जानते बूझते कि इस समय सीपीएम ऐतिहासिक लड़ाई लड़ रही है. अगर सरकार बची तो ऐटमी करार पर अमल होगा और भारतीय विदेश नीति की दिशा बदल जाएगी. क्या सोमनाथ चटर्जी नहीं जानते कि इससे भारत की संप्रभुता ख़तरे में पड़ेगी. भारत अमेरिका का पिछलग्गू देश बन कर रह जाएगा.
लोकतंत्र में एक-एक वोट की बड़ी अहमियत होती है. सोमनाथ चटर्जी से बेहतर शायद ही कम लोग वोट के महत्व को समझते होंगे. उन्होंने भी १९९९ में देखा था कि किस तरह उड़ीसा में मुख्यमंत्री होते हुए भी गिरधर गोमांग ने बतौर सांसद सदन में वोट दिया और वाजपेयी सरकार गिर गई। अगर गोमांग का एक वोट नहीं पड़ा होता तो वाजपेयी सरकार बच जाती. इसलिए एक वोट की ताकत से इनकार नहीं किया जा सकता. फिर भी अगर सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर बने रहने की जिद कर रहे हैं, ये सोच कर हैरानी होती है.
यहां सोमनाथ चटर्जी का तर्क है कि वो बीजेपी के साथ वोटिंग के ख़िलाफ़ हैं. इसलिए वो पद नहीं छोड़ेंगे. इस तर्क का कोई मतलब समझ में नहीं आता. संसद में क्या वो किसी बिल का समर्थन ये देख कर करते हैं कि उस पर बीजेपी की राय क्या है? अगर ऐसा है तो सोमनाथ चटर्जी को सांसद बनने का कोई हक नहीं. उन्हें तुरंत बतौर सांसद अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिये. अगर उनके जैसा पढ़ा-लिखा शख़्स अपने फ़ैसले बीजेपी के रुख के आधार पर करता है, मुद्दों के आधार पर नहीं तो ये सोच भारतीय लोकतंत्र की त्रासदी पर हंसा ही जा सकता है.
भारतीय राजनीति इस वक़्त ऐतिहासिक मोड़ पर है. ख़तरा भीतरी दुश्मन से नहीं बल्कि अमेरिका जैसे बाहरी शत्रु से है जो दोस्त बन कर हमारी पीठ पर छूरा घोंपना चाहता है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अमेरिका के एजेंट की तरह बर्ताव कर रहे हैं. अमर सिंह ने हमेशा दलाली की है और इस बार वो अपने आका मुलायम सिंह के साथ बड़ी गोटी सेट करने में जुटे हैं. दिल्ली में कारोबारी भी अड्डा जमा चुके हैं. सांसदों का बाज़ार सज चुका है, खरीद फ़रोख़्त शुरू हो गई है, बोलियां पर बोलियां लग रही हैं. ऐसे अनैतिक तरीके से सरकार बचाने में जुटी यूपीए को अगर सोमनाथ चटर्जी समर्थन कर रहे हैं तो ये ऐतिहासिक भूल है. इसके लिए उन्हें इतिहास कभी माफ नहीं करेगा.
1 comment:
भाई हमने तो एक पत्र लिख दिया सोमनाथ जी को हिम्मत वंधाने के लिए. अगर आपने पढ़ना है तो हमारे ब्लाग पर आयें:
http://kavya-kunj.blogspot.com/2008/07/blog-post_16.html
Post a Comment