बात २००४ की है. उन दिनों मैं स्टार न्यूज़ में था. आम चुनाव हो चुके थे और सियासी उठापटक के बीच सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से मिलने गए. उस समय हमारे सीनियर प्रोड्यूसर अजित साही पूरे दफ़्तर में घूम-घूम कर पूछ रहे थे कि प्रधानमंत्री कौन बनेगा? उनके मुताबिक सोनिया प्रधानमंत्री बनने वाली थीं और जो उनके राय से इत्तेफाक रखता वो उसकी तारीफ करते जो नहीं वो उसे पागल घोषित कर देते. उसी क्रम में वो मेरे पास भी आए. मैंने कहा कि कौन बनेगा ये तो नहीं कह सकता लेकिन इतना तय है कि सोनिया गांधी नहीं बनेंगी. अजित साही ने मुझे भी पागल घोषित कर दिया. मैंने उनसे कहा कि सोनिया विदेशी मूल की हैं और अगर उन्होंने प्रधानमंत्री पद कबूल किया तो उनके हर फ़ैसले को देशभक्ति के पैमाने पर तोला जाएगा और एक गलत फ़ैसले पर उन्हें जनता के बीच देशद्रोही घोषित कर दिया जाएगा. ऐसे में मेरा आकलन तो यही कहता है कि उनमें अगर हल्की सी भी सियासी समझ होगी तो वो प्रधानमंत्री नहीं बनेंगी.
हुआ भी ऐसा ही. सोनिया प्रधानमंत्री नहीं बनीं. उन्होंने त्याग का दांव खेला और उनका ये दांव अब तक सही जा रहा है. सोचिये आज सोनिया देश की प्रधानमंत्री होतीं और उनकी अगुवाई में देश अमेरिका से ऐटमी करार करता. तब क्या विरोध के तेवर यही होते? नहीं. वैसी सूरत में अब तक ये नारा दिया जा चुका होता कि इटली मूल की सोनिया ने भारत की अस्मिता को अमेरिका के हाथों बेच दिया. लेकिन सोनिया और उनके चेलों ने बड़ी चतुराई से विरोध के इस तीखे तेवर को अब तक दूर रखा है. बार बार यही कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ऐटमी करार चाहते हैं. मनमोहन की चाहत और सीपीएम महासचिव प्रकाश करात की जिद की वजह से आज ऐसा सियासी संकट पैदा हुआ है जिसने संसद को बाज़ार बना दिया है और सांसदों की बोली लगाई जा रही है. जबकि हक़ीक़त इसके एकदम उलट है.
अगर किसी कम अक्ल से भी पूछा जाए कि बीते चार साल से सरकार कौन चला रहा था? सोनिया या मनमोहन? तो सब यही कहेंगे कि सोनिया. यूपीए की चेयरमैन सोनिया के इशारे से मनमोहन सभी काम करते रहे. उनकी भूमिका एक कठपुतली से अधिक नहीं रही. ऐटमी करार भी मनमोहन ने नहीं सोनिया ने किया है. अगर सोनिया नहीं चाहतीं तो मनमोहन की हिम्मत और हैसियत ऐसी नहीं थी कि वो इतना बड़ा फैसला लेते. अपनी उसी जिद को पूरा करने के लिए आज सोनिया गांधी हर हथकंडे अपना रही हैं. प्रधानमंत्री निवास से कहीं ज्यादा गहमागहमी सोनिया के घर यानी दस जनपथ पर है. हर सांसद से सोनिया खुद मिल रही हैं. मनमोहन के भरोसे पर नहीं बल्कि सोनिया से मुलाकात के बाद और उनके भरोसे पर शिबू सोरेन जैसे नेता यूपीए को समर्थन देने को तैयार हो रहे हैं.
इसलिए अगर आज के सियासी संकट के लिए कोई जिम्मेदार है तो वो सिर्फ और सिर्फ सोनिया गांधी हैं. देश की अस्मिता को ख़तरे में डालने के लिए भी अगर कोई जिम्मेदार हैं तो वो हैं सोनिया गांधी. बिजली बनाने के नाम पर भारत की सुरक्षा से समझौता करने के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वो हैं सोनिया गांधी. अगर सरकार बची और करार पर अमल हुआ तो वक़्त इस तथ्य पर छाए धुंधलके को और साफ कर देगा. तब इस देश की जनता सोनिया गांधी से उनकी इस साज़िश का जवाब मांगेगी. तब सोनिया से पूछा जाएगा कि क्या देश को इतना बड़ा धोखा देने के लिए ही आपने त्याग का नाटक खेला था? प्रधानमंत्री का पद ठुकराया था? एक ऐसा धोखा जिससे उबरने के लिए हम लोगों को ना जाने कितना संघर्ष करना होगा.
हुआ भी ऐसा ही. सोनिया प्रधानमंत्री नहीं बनीं. उन्होंने त्याग का दांव खेला और उनका ये दांव अब तक सही जा रहा है. सोचिये आज सोनिया देश की प्रधानमंत्री होतीं और उनकी अगुवाई में देश अमेरिका से ऐटमी करार करता. तब क्या विरोध के तेवर यही होते? नहीं. वैसी सूरत में अब तक ये नारा दिया जा चुका होता कि इटली मूल की सोनिया ने भारत की अस्मिता को अमेरिका के हाथों बेच दिया. लेकिन सोनिया और उनके चेलों ने बड़ी चतुराई से विरोध के इस तीखे तेवर को अब तक दूर रखा है. बार बार यही कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ऐटमी करार चाहते हैं. मनमोहन की चाहत और सीपीएम महासचिव प्रकाश करात की जिद की वजह से आज ऐसा सियासी संकट पैदा हुआ है जिसने संसद को बाज़ार बना दिया है और सांसदों की बोली लगाई जा रही है. जबकि हक़ीक़त इसके एकदम उलट है.
अगर किसी कम अक्ल से भी पूछा जाए कि बीते चार साल से सरकार कौन चला रहा था? सोनिया या मनमोहन? तो सब यही कहेंगे कि सोनिया. यूपीए की चेयरमैन सोनिया के इशारे से मनमोहन सभी काम करते रहे. उनकी भूमिका एक कठपुतली से अधिक नहीं रही. ऐटमी करार भी मनमोहन ने नहीं सोनिया ने किया है. अगर सोनिया नहीं चाहतीं तो मनमोहन की हिम्मत और हैसियत ऐसी नहीं थी कि वो इतना बड़ा फैसला लेते. अपनी उसी जिद को पूरा करने के लिए आज सोनिया गांधी हर हथकंडे अपना रही हैं. प्रधानमंत्री निवास से कहीं ज्यादा गहमागहमी सोनिया के घर यानी दस जनपथ पर है. हर सांसद से सोनिया खुद मिल रही हैं. मनमोहन के भरोसे पर नहीं बल्कि सोनिया से मुलाकात के बाद और उनके भरोसे पर शिबू सोरेन जैसे नेता यूपीए को समर्थन देने को तैयार हो रहे हैं.
इसलिए अगर आज के सियासी संकट के लिए कोई जिम्मेदार है तो वो सिर्फ और सिर्फ सोनिया गांधी हैं. देश की अस्मिता को ख़तरे में डालने के लिए भी अगर कोई जिम्मेदार हैं तो वो हैं सोनिया गांधी. बिजली बनाने के नाम पर भारत की सुरक्षा से समझौता करने के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वो हैं सोनिया गांधी. अगर सरकार बची और करार पर अमल हुआ तो वक़्त इस तथ्य पर छाए धुंधलके को और साफ कर देगा. तब इस देश की जनता सोनिया गांधी से उनकी इस साज़िश का जवाब मांगेगी. तब सोनिया से पूछा जाएगा कि क्या देश को इतना बड़ा धोखा देने के लिए ही आपने त्याग का नाटक खेला था? प्रधानमंत्री का पद ठुकराया था? एक ऐसा धोखा जिससे उबरने के लिए हम लोगों को ना जाने कितना संघर्ष करना होगा.
12 comments:
sacchai ki kadar thoda der se hoti hai,isliye aapke sach ko char saal intezaar karna pada.baharhal is bebak rai ke liye badhai
बहुत सही कहा है।
'आम जनता' को भी याद दिलाया जाना चाहिये कि जो इतिहास से नहीं सीखते वे इतिहास को दोहराने के लिये मजबूर होंगे; अतः उन्हें भी गुलाम बनने से नहीं घबराना चाहिये।
राम मिलाई जोडी़... एक अंधा एक कोढ़ी... एक सोनिया ... एक मनमोहन.
आपने सही बात कही. मनमोहन को गाली देने से क्या फ़ायदा. वो तो वही कर रहा है जो उसे आता है. शुरू से अब तक उसने अमेरिका की दलाली की और अब भी वही कर रहा है. लेकिन उसकी ये दुकान चल रही है तो वो सोनिया की ही बदौलत. इसलिए सोनिया का गुनाह ज्यादा बड़ा है.
अनुनाद जी,
आम जनता की मजबूरी बहुत बड़ी है. विकल्पों का अभाव इतना अधिक है कि जनता कुछ कर नहीं सकती. पिछले चुनाव को ही लीजिये. आम जनता ने इंडिया साइनिंग को ठुकरा कर एनडीए की मुंह पर कालिख पोत दी थी. तब यूपीए का समीकरण बना. लगा कि एनडीए ने जितना कुछ बेचा है उसे वसूला जाएगा. लेकिन यूपीए ने और भी अधिक बेच दिया. अब चुनाव नजदीक हैं. जनता क्या करेगी? अगर वो यूपीए को ठुकरा भी दे तो किसे कबूल करेगी. एनडीए को या फिर यूएनपीए को. जो भी आएगा वो वही करेगा जो यूपीए ने किया. आज हमारे देश की हकीकत ही यही है. दलाल, भांट और अपराधी राज कर रहे हैं. जनता आंसू बहा रही है.
बहुत सही बात लिखी है. सचमुच हमारी संसद रंगमंच बनी हुई है इन नेताओं के कारण.. अत्यन्त शर्मनाक..
आप फिर से प्रकट हुए यह देखकर अच्छा लगा.
समरेंद्र जी आपकी इस टिप्पणी पर ये पंक्तियां कहना चाहूंगा -
लोग लड़ते हैं यहां कुर्सियां पाने के लिए
काश लड़ता कोई ईमान बचाने के लिए
सादर,
ओमप्रकाश तिवारी
इस देश की बहु:) **इस से अच्छा बेटा कुवारा ही रह जाये** देश को जितना तबाही की ओर लेजाना हे ले गई हे, जो एक वियर बार मे वेटर हो, उस के खान दान की ओकात केसी होगी, ओर अब केसी हे, यह सब पेसा कहा से आया, हम जेसे वेबकुफ़ो की जेब से,लानत हे हम सब पर, गुलाम थे, ओर हे भी, क्यो कि हमारे जींस मे गुलामी जम चुकी हे,जागो जागो आने वाली पीडी को तो आजाद पेदा करो,
कल जब कुछ गलत हो गया तो कया पकड लो गे इस वेटरनी का, यह तो भाग जायेगी, ओर फ़िर से जंजीरे हमारी आने वाली पीडी के गले मे होगी...
आपका आंकलन बेहद सटीक था। किसी के नकारने या ठुकराने से सच मर तो नहीं जाता्. अब तो सबको दिख ही रहा है। कांग्रेस की लगाम पूरी तरह से सोनिया के हाथ में हैं। अच्छा लिखा। पर्दे के पीछे की जानकारी देने के लिए धन्यवाद।शुभकामनाओं सहित।
"अगर किसी कम अक्ल से भी पूछा जाए कि बीते चार साल से सरकार कौन चला रहा था? सोनिया या मनमोहन? तो सब यही कहेंगे कि सोनिया" - आप क्या उनके घर गये थे देखने के लिये?
samrendra ji jo likh rahe hain vah desh ke samajhdar aur nishpaksh vichoaro ka pratinidhitiv karta hai. desh ki janta ko samjhane ke saath saath jagane ka bhi prayas hai yah. sahi vichaar ek dam sahi samay par. sadhuwad
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